Apr 29, 2015
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पृथ्वी के पहले सत्यवादी सम्राट से जुड़ी है अजा एकादशी की कहानी
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1. प्रतापी राजा
भारत की भूमि पर अनेक प्रतापी-महाप्रतापी राजाओं ने जन्म लिया
है, जिन्होंने अपने विशिष्ट गुणों के चलते अपना नाम इतिहास के पन्नों में
सुनहरे अक्षरों से दर्ज करवाया। इनमें से बहुत से ऐसे भी हैं जिनका हमारे
पौराणिक इतिहास से बेहद गहरा नाता है। इन्हीं प्रतापी राजाओं में से एक हैं
सूर्यवंशी सत्यव्रत के पुत्र राजा हरिश्चंद्र, जिन्हें उनकी सत्यनिष्ठा के
लिए आज भी जाना जाता है।
2. सत्यवादी हरिश्चंद्र
राजा हरिश्चंद्र हर हालत में केवल सच का ही साथ देते थे। अपनी
इस निष्ठा की वजह से कई बार उन्हें बड़ी-बड़ी परेशानियों का भी सामना करना
पड़ा लेकिन फिर भी उन्होंने किसी भी हाल में सच का साथ नहीं छोड़ा। वे एक बार
जो प्रण ले लेते थे उसे किसी भी कीमत पर पूरा करके ही छोड़ते थे।
3. पुत्र की मृत्यु
लेकिन एक बार राजा हरिश्चंद्र भी सच का साथ देने से चूक गए, जिसका खामियाजा उनके पुत्र को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा।
4. पुत्र विहीनता
दरअसल राजा हरिश्चंद्र काफी लंबे समय तक पुत्र विहीन रहे। अपने
गुरु वशिष्ठ के कहने पर उन्होंने वरुणदेव की कठोर उपासना की। वरुण देव उनके
तप से प्रसन्न हुए और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति का वरदान दे दिया।
लेकिन उसके लिए एक शर्त भी रखी कि उन्हें यज्ञ में अपने पुत्र की बलि देनी
होगी।
5. पुत्र की बलि
पहले तो राजा हरिश्चंद्र इस बात के लिए राजी हो गए लेकिन पुत्र
रोहिताश्व के जन्म के बाद उसके मोह में इस तरह बंध गए कि अपना दिया हुआ वचन
उनके लिए बेमानी हो गया। वरुणदेव कई बार पुत्र की बलि लेने आए लेकिन हर
बार हरिश्चंद्र अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर पाए।
6. पुत्र मोह
पुत्र मोह के कारण अपनी प्रतिज्ञा का पालन ना कर पाने की वजह से
राजा हरिश्चंद्र को अपना सब कुछ गंवाना पड़ा, जिसमें राज-पाट के साथ-साथ
उनकी पत्नी और वो पुत्र भी शामिल थे।
7. रोचक घटना
राजा हरिश्चंद्र के जीवन की एक बेहद रोचक घटना का जिक्र हम यहां
करने जा रहे हैं, जिसका संबंध अजा एकादशी के महत्व और उसकी गरिमा के साथ
जुड़ा हुआ है।
8. राजा का स्वप्न
एक बार राजा हरिश्चन्द्र ने सपना देखा कि उन्होंने अपना सारा
राजपाट विश्वामित्र को दान में दे दिया है। अगले दिन जब विश्वामित्र उनके
महल में आए तो उन्होंने विश्वामित्र को सारा हाल सुनाया और साथ ही अपना
राज्य उन्हें सौंप दिया।
9. विश्वामित्र की मांग
जाते-जाते विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र से पांच सौ स्वर्ण
मुद्राएं दान में मांगी। राजा ने उनसे कहा कि “पांच सौ क्या, आप जितनी चाहे
स्वर्ण मुद्राएं ले लीजिए।” इस पर विश्वामित्र हंसने लगे और राजा को याद
दिलाया कि राजपाट के साथ राज्य का कोष भी वे दान कर चुके हैं और दान की हुई
वस्तु को दोबारा दान नहीं किया जाता।
10. सब कुछ बिक गया
तब राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचकर स्वर्ण मुद्राएं हासिल
की, लेकिन वो भी पांच सौ नहीं हो पाईं। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को भी बेच
डाला और सोने की सभी मुद्राएं विश्वामित्र को दान में दे दीं।
11. श्मशान की नौकरी
राजा हरिश्चंद्र ने खुद को जहां बेचा था वह श्मशान का चांडाल
था, जो शवदाह के लिए आए मृतक के परिजन से कर लेकर उन्हें अंतिम संस्कार
करने देता था। उस चांडाल ने राजा हरिश्चंद्र को अपना काम सौंप दिया। राजा
हरिश्चंद्र का कार्य था कि जो भी व्यक्ति शव लेकर उसके अंतिम संस्कार के
लिए श्मशान में आए उससे कर वसूलने के बाद ही अंतिम संस्कार की इजाजत दी
जाए।
12. कर्तव्यनिष्ठा
राजा हरिश्चंद्र ने इसे अपना कार्य समझ लिया और पूरी निष्ठा के
साथ उसे करने लगे। एक दिन ऐसा भी आया जब राजा हरिश्चंद्र का अपने जीवन के
सबसे बड़े दुख से सामना हुआ।
13. एकादशी का व्रत
उस दिन राजा हरिश्चंद्र ने एकादशी का व्रत रखा हुआ था।
अर्धरात्रि का समय था और राजा श्मशान के द्वार पर पहरा दे रहे थे। बेहद
अंधेरा था, इतने में ही वहां एक लाचार और निर्धन स्त्री बिलखते हुए पहुंची
जिसके हाथ में अपने पुत्र का शव था।
14. पुत्र का शोक
वह स्त्री इतनी निर्धन थी कि उसने अपनी साड़ी को फाड़कर उस वस्त्र
से अपने पुत्र के शव के लिए कफन तैयार किया हुआ था। राजा हरिश्चंद्र ने
उससे भी कर मांगा लेकिन कर की बात सुनकर वह स्त्री रोने लगी। उसने राजा से
कहा कि उसके पास बिल्कुल भी धन नहीं है।
15. स्त्री का चेहरा
जैसे ही आसमान में बिजली चमकी तो उस बिजली की रोशनी में
हरिश्चंद्र को उस अबला स्त्री का चेहरा नजर आया, वह स्त्री उनकी पत्नी
तारावति थी और उसके हाथ में उनके पुत्र रोहिताश्व का शव था। रोहिताश्व की
सांप काटने की वजह से अकाल मृत्यु हो गई थी।
16. भावुकता
अपनी पत्नी की यह दशा और पुत्र के शव को देखकर हरिश्चंद्र बेहद
भावुक हो उठे। उस दिन उनका एकादशी का व्रत भी था और परिवार की इस हालत ने
उन्हें हिलाकर रख दिया। उनकी आंखों में आंसू भरे थे लेकिन फिर भी वह अपने
कर्तव्य की रक्षा के लिए आतुर थे।
17. सत्य की रक्षा
भारी मन से उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि जिस सत्य की रक्षा के
लिए उन्होंने अपना महल, राजपाट तक त्याग दिया, स्वयं और अपने परिवार को
बेच दिया, आज यह उसी सत्य की रक्षा की घड़ी है।
18. कर की मांग
राजा ने कहा कि कर लिए बिना मैं तुम्हें भीतर प्रवेश करने की
अनुमति नहीं दूंगा। यह सुनने के बाद भी रानी तारामती ने अपना धीरज नहीं
खोया और साड़ी को फाड़कर उसका टुकड़ा कर के रूप में उन्हें दे दिया।
19. अमरता का वरदान
उसी समय स्वयं ईश्वर प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा
"हरिश्चन्द्र! तुमने सत्य को जीवन में धारण करने का उच्चतम आदर्श स्थापित
किया है। तुम्हारी कर्त्तव्यनिष्ठा महान है, तुम इतिहास में अमर रहोगे।"
20. वापस मिला राजपाट
हरिश्चंद्र ने ईश्वर से कहा “अगर वाकई मेरी कर्तव्यनिष्ठा और
सत्य के प्रति समर्पण सही है तो कृपया इस स्त्री के पुत्र को जीवनदान
दीजिए”। इतने में ही रोहिताश्व जीवित हो उठा। ईश्वर की अनुमति से
विश्वामित्र ने भी हरिश्चंद्र का राजपाठ उन्हें वापस लौटा दिया।
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- Satish Todkariबहुत अच्छा लेख लिखा है9 माह पहले
- Sarvesh Singhएक शहर में एक अमीर व्यक्ति रहता था । वह पैसे से तो बहुत धनी था लेकिन शरीर और सेहत से बहुत ही गरीब । दरअसल वह हमेशा पैसा कमाने की सोचता रहता , दिन रात पैसा कमाने के लिए मेहनत करता लेकिन अपने शरीर के लिए उसके पास बिल्कुल समय नहीं था । फलस्वरूप अमीर होने के वाबजूद उसे कई नई नई प्रकार की बिमारियों ने घेर लिया और शरीर भी धीरे धीरे कमजोर होता जा रहा था , लेकिन वह इस सब पर ध्यान नहीं देता और हमेशा पैसे कमाने में लगा रहता ।एक दिन वह थकाहारा शाम को घर लौटा और जाकर सीधा बिस्तर पे लेट गया । धर्मपत्नी जी ने खाना लगाया लेकिन अत्यधिक थके होने के कारण उसने खाना खाने से मना कर दिया और भूखा ही सो गया । आधी रात को उसके शरीर में बहुत तेज दर्द हुआ , वह कुछ समझ नहीं पाया कि ये क्या हो रहा है । अचानक उसके सामने एक विचित्र सी आकृति आकर खड़ी हो गयी और बोली – हे मानव मैं तुम्हारी आत्मा हूँ और आज मैं ये तुम्हारा शरीर छोड़ कर जा रही हूँ ।वह व्यक्ति घबराया सा बोला – आप मेरा शरीर छोड़ कर क्यों जाना चाहती हो मैंने इतनी मेहनत से इतना पैसा और वैभव कमाया है , इतना आलिशान बंगला बनवाया है यहाँ तुम्हें रहने में क्या दिक्कत है । आत्मा बोली – हे मानव सुनो मेरा घर ये आलिशान बंगला नहीं तुम्हारा शरीर है जो बहुत दुर्बल हो गया है जिसे अनेकों बिमारियों ने घेर लिया है । सोचो अगर तुम्हें बंगले की बजाए किसी टूटी झोपड़ी में रहना पड़े तो कितना दुःख होगा उसकी प्रकार तुमने अपने शरीर यानि मेरे घर को भी टुटा फूटा और खण्डार बना लिया है जिसमें मैं नहीं रह सकती ।मित्रों ये सिर्फ एक कहानी न होकर एक जीवन की सच्चाई है । दुनिया में बहुत सारे लोग पैसा कमाने के चक्कर में अपना स्वास्थ्य गवां देते हैं , वे लोग ये नहीं सोचते की हमारी आत्मा और प्राण को किसी आलिशान बंगले या पैसे की जरुरत नहीं बल्कि एक स्वस्थ शरीर की आवश्यकता है। तो ,मित्रों पैसा ही सबकुछ नहीं है स्वास्थ्य सबसे बड़ी पूंजी है।1 वर्ष पहले
- Sarvesh Singhसूर्यवंशी सत्यव्रत के पुत्र राजा हरिश्चंद्र, जिन्हें उनकी सत्यनिष्ठा के लिए आज भी जाना जाता है।1 वर्ष पहले
- Sarvesh Singhसूर्यवंशी सत्यव्रत के पुत्र राजा हरिश्चंद्र, जिन्हें उनकी सत्यनिष्ठा के लिए आज भी जाना जाता है।1 वर्ष पहले
- Sarvesh SinghAccording to ayurveda, our health rests on the three pillars of life — ahara or diet, nidra or sleep, and brahmacharya or observance of sexual discipline. All three are responsible for our wellbeing. But out of these three, the concept of proper sleep is something we often ignore and this results in illness. Nidra is important and impacts our health.1 वर्ष पहले
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