Wednesday 27 November 2013

लघुकथा- देवी
ज्योति जैन
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तीन ‍महिलाएं मरणोपरांत स्वर्ग पहुंचीं। उनमें एक संपन्न परिवार की समाजसेविका थी। लोग उन्हें देवी की तरह पूजते थे। एक मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा महिला थी व एक निम्न श्रेणी की महिला थी, जो जिंदगीभर अपने शराबी पति के हाथों पिटती रही थी।

भगवान ने उन तीनों से एक सवाल किया, 'सुना है, पृथ्वी पर लोग स्त्री को देवी के समान मानते हैं व उसकी पूजा करते हैं। क्या यह सच है?'

इस पर संपन्न परिवार की महिला, जिसने अपना जीवन समाजसेवा में ही बिता दिया था, बोली, 'हां प्रभु! मेरे लिए तो लोग कहते थे कि ये तो देवी है, देवी।'

मध्यमवर्गीय महिला बोली, 'मेरे साथ तो ऐसा कुछ नहीं होता था।' फिर कुछ सोचकर बोली, 'अंऽऽऽऽ... शायद देवी तो वे भी मुझे समझते थे, क्योंकि जब मैं दफ्तर से घर आती थी तो पड़ोसिनों के साथ बैठी मेरी सास कहती थी- 'चलती हूं, देवीजी आ गई।'

निम्न वर्ग की महिला बोली, 'भगवान! मैं तो कुछ किताब-अक्षर बांची हुई नहीं हूं और ये बातें समझती नहीं लेकिन जब मेरा मरद मुझे लात-घूंसों से मारता था तो अड़ोसी-पड़ोसी कहते थे- आज फिर बेचारी की पूजा हो रही है और जब एक दिन मैंने गुस्से में आकर सिल से उसका सिर फोड़ दिया तो लोग कहने लगे- आज तो यह साक्षात चंडी देवी लग रही है।'
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