Friday 20 September 2013

Geeta Sar.

The best hindi blog for hindi articles on Health and Ayurveda,Motivation,Yoga and Inspirational stories.

बृहस्पतिवार, 27 सितम्बर 2012

geeta saar in hindi


                 करिष्ये वचनं तव .....

 दोस्तों महाभारत आज भी जारी है हमारे मन मे !  आज भी अर्जुन यानी हम  मोहग्रस्त है !  मन हमे अपने कर्त्तव्य पथ से पीछे खींच रहा है ! आलस और डर हमे कर्त्तव्य पथ पर आरूढ़ नहीं होने दे रहे हैं !   दुर्बलता हम पर हावी हो रही है !   काम से ज्यादा उसके परिणाम की चिंता हमे खाए जा रही है !   मन जकड रहा है , तन निढाल है !  सामने कामों का पहाड़ है !    अवसर हाथ से निकला जा रहा हैं !   हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं !   है ना ?
उठिए ,  हताशा छोड़िये,  गीता के वचनों से अपने आप को चार्ज कीजिये और चल पड़िए अपने लक्ष्य की तरफ ,  जल्दी कीजिये   समय हाथ से रेत की तरह फिसला जा रहा है ................


कुरुक्षेत्र के मैदान मे कोरवों और पांडवों की सेनायें आमने -सामने आ चुकी थी !   युद्ध प्रारंभ होने ही वाला था !   पांडवों की कमान अर्जुन के हाथों मे थी !   तभी सामने  कोरवों की सेना मे अपने पितामह भीष्म ,  गुरु द्रोणाचार्य ,  कृपाचार्य,  और अपने कोरव भाइयों को देख कर अर्जुन अचानक मोहग्रस्त हो गया ,  उसका मनोबल कमजोर पड़ने लगा ,  मन पलायनवादी होने लगा ! सात अक्षोहिनी सेनाओं का महाबली केवट  विकलता के क्षण मे पतवार फ़ेंक नौका को मझधार मे छोड़कर पलायन करने को तत्पर हो उठा !
कातर अर्जुन अपने सारथि श्री कृष्ण से गुहार कर उठा ---  "केशव ,मुझे ये राज्य नहीं चाहिये !   मुझे विजय नहीं चाहिये !   मुझे सुख नहीं चाहिये !   मुझे कुछ नहीं चाहिये !   मै अपने बंधुओं को नहीं मार सकता !   मैं युद्ध नहीं कर सकता ! मैं युद्ध नहीं करूँगा .........!
निर्णय के इन क्षणों मे अर्जुन की ऐसी कायरता और हताशा को देख पार्थसारथी विस्मय से भर अर्जुन को फटकार उठे -----
"असमय ऐसी क्लीवता !   ऐसा तो कोई श्रेष्ठ वीर नहीं करता !   ऐसे आचरण से तू स्वर्ग पाना चाहता है ?  हृदय की यह कैसी अनुचित दुर्बलता ! छोड़ दे ,  छोड़ दे ,  पार्थ  मन की इस तुच्छ दुर्बलता को छोड़ दे !   और हुंकार कर   उठ खड़ा हो वीरों की भांति   युद्ध करने ! "
  व्याकुल अर्जुन ने वेदना से भरे स्वर मे कहा -- ,'मधुसुदन !   पितामह और गुरुवर!  मै इन पर बाण कैसे चलाऊंगा ?  नहीं माधव ! नहीं !     असंभव !    मै  भिक्षा मांग कर अपना जीवन चला  लूँगा   पर युद्ध नहीं करूँगा !
"पार्थ भयभीत ना हो  ! मृत्यु से भयभीत ना हो !  तू सोचता है की अपने पितामह .गुरु और बंधुओं का वध यदि तू करेगा तो ही वे मृत्यु को प्राप्त होंगे ! और यदि तू उनका वध नहीं करेगा तो ये चिरायु हो जाएंगे ?  कितना बड़ा भ्रम है तेरा अर्जुन !   यह स्पष्ट समझ ले ,हर मनुष्य अपने कर्मफल के अनुसार मृत्युवरण करता है !   तू किसी की मृत्यु का कारण नहीं !   पार्थ तू मात्र निमित्त है ..........! 

कर्म कर !  किन्तु परिणाम मे आसक्ति मत रख !   जय-पराजय जैसे कर्मफल से मुक्त होकर   अपना कर्त्तव्य पालन कर ! 

करना है इसलिए कर !
 कर्म के लिए कर्म कर ,  फल के लिए नहीं !  
 निर्विकार और निरपेक्ष भाव से कर्म कर !  
 यह मत सोच की कर्म का कर्ता तू है !   स्वयं को कर्म मे लिप्त ना कर क्योंकि तू करने वाला नहीं है !  
तू सोचता है की तू अपनी इच्छा से जो चाहे कर लेगा ,  तो यह तेरा भ्रम है !   जो तू चाहेगा वो ना होगा  और जो ना चाहेगा वो हो जाएगा !   क्योंकि नियामक तू नहीं !  तू पूरी शक्ति से चाह कर भी किसी को मार नहीं सकता और ना चाह कर भी तू मारेगा !

इसलिए अपने मन से अहंकार को निकाल दे कि  तू कर्ता है ! अतः अनासक्त भाव से अपना कर्त्तव्य पूरा कर !   परिणाम पर मत जा !   फल पर मत जा !

पार्थ !   यदि तू ईश्वर की उपासना करना चाहता है तो अपने कर्मों के द्वारा ही कर !   समर्पित कर दे अपने समस्त कर्म ईश्वर को !   जल मे रह कर भी जैसे कमल पत्र जल से ऊपर रहता है ,  उसी प्रकार कर्म करते हुए भी तू कमल पत्र की तरह कर्म से ऊपर उठा रह ......!

मै ही महाकाल हूँ अर्जुन ?  जो आज दिखाई देता है ,  वह कल ना रहेगा !  
 इसलिए तू उठ ,  खड़ा हो !   समय को पहचान और यशस्वी बन !

पार्थ ! मोह ,ममता ,संकोच ,डर सब त्याग दे !   यदि त्याग ना सके तो अपनी ये दोष दुर्बलताएँ मुझे सोंप दे !
आज तेरे सामने उज्जवल भविष्य का द्वार खुला हुआ है !   भाग्यवान मनुष्य ही ऐसा स्वर्ण अवसर पाते हैं !  और तू स्वर्ग द्वार पर पहुँच कर भी पलायन करना चाहता है ?

सोभाग्यशाली वीर !   उठ खड़ा हो ,  क्योंकि आज आत्मिक उन्नति भी तेरी मुट्ठी मे है और भोतिक प्रगति भी तेरी मुट्ठी मे है ,यश भी तेरी मुट्ठी मे है !  उठा ले लाभ इस पवित्र अवसर का !

उठ जा ! खड़ा हो जा ! गांडीव धारण कर ! युद्ध कर ! 

अर्जुन कर्मपथ पर दृढ चरणों से शिला के सामान खड़े हो चुके थे !  नेत्रों मे ज्वाला थी !   हाथों मे गांडीव और गांडीव मे टंकार !   उनके अधरों से एक दृढ स्वर निकला   "करिष्ये वचनं तव "
                            -----------------------------------------------------
ये आर्टिकल पूज्य गुरुदेव के ज्ञान के सागर की कुछ बूँदें हैं !
                              -----------------------------------------------------
हमारे पाठकों ने इन्हें भी पसंद किया है

No comments:

Post a Comment