विदुर नीति --
महाभारत काल मे युद्ध होने की आशंका से चिंतित धृतराष्ट्र विदुर को
बुलाते हैं ! विदुर तब उन्हें जो ज्ञान की बातें बताते हैं ,वही विदुर
नीति है ! जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं !
- जो पहले निश्चय कर के फिर कार्य का आरम्भ करता है ,कार्य के बीच मे नहीं रुकता ,समय को व्यर्थ नहीं जाने देता और मन को वश मे रखता है ,वही पंडित कहलाता है !
- थोड़ी बुद्धि वाले ,दीर्घसूत्री ,जल्दबाज ,और स्तुति करने वाले लोगों के साथ गुप्त सलाह नहीं करनी चाहिये !
- सफलता और उन्नति चाहने वाले पुरुषों को नींद ,तन्द्रा (ऊँघना) ,डर, क्रोध ,आलस्य तथा दीर्घसूत्रता (जल्दी हो जाने वाले काम मे अधिक देर लगाने की आदत )-इन 6 दुर्गुणों को त्याग देना चाहिये !
- राजन! नीरोग रहना ,ऋणी ना होना , परदेश मे ना रहना ,अच्छे लोगों के साथ मेल होना ,निडर होकर रहना --ये इस संसार के सुख हैं !
- जो किसी दुर्बल का अपमान नहीं करता ,सदा सावधान रहकर शत्रु के साथ बुद्धिपूर्वक व्यवहार करता है , बलवानों के साथ युद्ध पसंद नहीं करता तथा समय आने पर पराक्रम दिखाता है , वही धीर है !
- इसे करने से मेरा क्या लाभ होगा और ना करने से क्या हानि होगी - इस प्रकार कर्मों के विषय मे भलीभांति विचार करके फिर मनुष्य करे या ना करे !
- राजन ! जो गाय बड़ी कठनाई से दूध दुहने देती है ,वह बहुत क्लेश उठाती है ! किन्तु जो आसानी से दूध देती है ,उसे लोग कष्ट नहीं देते !
- जो धातु बिना गरम किये मुड जाते हैं ,उन्हें आग मे नहीं तपाते! इस वचन के अनुसार बुद्धिमान पुरुष को अधिक बलवान के सामने झुक जाना चाहिये !
- शराब पीना ,कलह ,समूह के साथ बेर ,पति -पत्नी मे भेद पैदा करना ,राजा के साथ द्वेष और बुरे रास्ते --ये सब त्यागने योग्य हैं !
- हस्तरेखा देखने वाला ,चोरी करके व्यापार करने वाला ,जुआरी ,वैद्य ,शत्रु ,मित्र और नर्तक --इन सातों को कभी गवाह ना बनायें !
- जलती हुई आग से सोने की पहचान होती है ,सदाचार से सत्पुरुष की ,व्यवहार से साधू की ,भय आने पर शूर की ,आर्थिक कठनाई मे धीर की और कठिन आपत्ति मे शत्रु और मित्र की परीक्षा होती है १
- दिनभर मे ही वो कार्य कर लें ,जिससे रात मे सुख से रह सकें ! युवावस्था मे वह काम करें ,जिससे वृद्धावस्था मे सुख से रह सकें !
- यदि वृक्ष अकेला है तो वह बलवान ,दृढ मूल तथा बहुत बड़ा होने पर भी एक ही क्षण मे आंधी के द्वारा बलपूर्वक शाखाओं सहित धराशाई किया जा सकता है !
- किन्तु जो बहुत से वृक्ष एक साथ रहकर समूह के रूप मे खड़े रहते हैं ,वे एक दुसरे के सहारे बड़ी से बड़ी आंधी को भी सह सकते हैं !
- जो मनुष्य आपके साथ जैसा वर्ताव करे उसके साथ वैसा ही वर्ताव करना चाहिये --यही नीति धर्म है !
- बहुत दुखी होने पर भी कृपण ,गाली बकने वाले ,मुर्ख ,जंगल मे रहने वाले ,धूर्त ,नीच,निर्दयी ,शत्रु और क्र्तघ्न्न से कभी सहायता की याचना नहीं करनी चाहिये !
- जो विश्वास पात्र नहीं है उसका तो विश्वास करें ही नहीं ,किन्तु जो विश्वासपात्र है उस पर भी अधिक विश्वास ना करें !
- उन्नति के मूलमंत्र हैं ---उद्योग (work ),संयम ,दक्षता ,सावधानी ,धेर्य ,स्मृति और सोचविचार कर कार्य प्रारंभ करना !
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